कुष्माण्डानु नाम निरालु, ईष्ट हास्यथि ब्रह्म रचनारु
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कुष्माण्डानु नाम निरालु,
ईष्ट हास्यथि ब्रह्म रचनारु (२)
सूर्य लोकमा निवास करती, जग आखाने प्रकाशित करती ;
आदि-शक्ति रुपे वखाणु,
कुष्माण्डानु नाम निरालु........१
अष्ट भुजाली तू कहेवाय, धनुष्य बाण चक्र गड़ाय;
मानु मुख छे ममतावालु ,
कुष्माण्डानु नाम निरालु........२
कूष्माण्ड कोलाने कहे छे, पञमे टेनी बलि चढ़े छे;
यज्ञ विधि पूरण करनारु,
कुष्माण्डानु नाम निरालु.........३
चौथा नोरते तू पुजाय, रोग शोकनों नाश थाय;
' गगजी 'ने शांति देनारु, कुष्माण्डानु नाम निरालु.........४
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